Priyanka Verma

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लेखनी प्रतियोगिता - फलदार आंगन


     फलदार आंगन



"क्यों री, तू फिर से आंगन से अमरूद तोड़ रही है, कोई काम धाम नहीं है क्या तुझे? चल भाग यहां से।" आज फिर से राधा की मामी राधा को झिड़क रही थी।

पांच साल की मासूम राधा को मामी की डांट से ज्यादा अमरूद तोड़ने की फिक्र सता रही थी। कम से कम चार अमरूद तो तोड़ेगी ही वो। दो अपने लिए और दो मां के लिए। वो पूरी कोशिश कर रही थी, अमरूद तोड़ने की।
पर राधा के नन्हे नन्हे हाथ, अमरूद लगे टहनियों तक नहीं पहुंच रहे थे।

राधा को वहीं खड़ा देख मामी फिर गुस्से से चिल्लाई, " अरे गई नही अभी तक, अमरूद नही आयेंगे तेरे हाथ, चोट  लगेगी तो फिर मुझे मत कहना।"
मामी की बात सुनकर राधा बोली, " मामी, क्या आप मुझे अमरूद तोड़ कर दोगी?"

मामी ने उसकी तरफ घूर कर देखा और बोली, " क्यों, मेरे पास और कोई काम नही है क्या? जो मैं तेरे लिए अमरूद  तोडूंगी। जा अपने घर।"


राधा रुआंसी हो कर अपने घर की तरफ चल पड़ी। मां तो अभी काम पर गई है। और स्कूल की छुट्टियां चल रही हैं। वो बेचारी अकेली क्या करेगी। घर आकर नन्ही राधा एक कोने में बैठ गई।


...

वो और उसकी प्यारी मां दोनों एक छोटे से घर में रहते थे। एक कमरा रसोई और एक छोटा सा आंगन। उसके पापा नहीं थे। उनको गुजरे हुए चार साल हो गए थे। राधा को तो  अपने पापा की सूरत भी याद नहीं थी। उसकी मां पास की दुकान पर काम करती थी। सुबह 9 बजे राधा को स्कूल भेज कर शाम को 8 बजे घर आती। फिर घर का काम करती और रात को राधा को अपने सीने से लगा, परियों की कहानियां सुनाते सुनाते सो जाती। वो अपनी लाडली को मां बाप दोनों का प्यार देती। राधा को अच्छी बातें सिखाती। तभी तो इस अल्हड़ उमर में भी राधा बहुत समझदार थी। स्कूल से आने के बाद, मां के वापिस लौटने तक वो कहीं नहीं जाती।


आज ही उसने थोड़ी हिम्मत की थी। पास में ही मामा मामी का घर था। वहां उनके आंगन में एक अमरूद का पेड़ था। जिस पर बड़े बड़े अमरूद लगे हुए थे। राधा ने सोचा जल्दी से अमरूद तोड़कर वापिस घर आ जाऊंगी।

पर उसे तो खाली हाथ लौटना पड़ा। मायूस राधा घर में अकेली थी। आंखों से मोती जैसे आंसू बह रहे थे। रोते रोते जाने कब राधा की आंख लग गई, जो उसकी मां के आने पर खुली। मां को देखते ही राधा उनके गले लग गई और सारी बात बताई।


मां ने उसको प्यार से समझाते हुए कहा, "देखो राधा बेटी, मामी की बात का बुरा नही मानते। वो तुमसे बड़ी हैं ना? और अगर तुमको चोट लग जाती तो फिर तुमको और मुझे कितनी तकलीफ होती है ना। हम एक काम करते हैं, तुम्हारे लिए यहां हमारे आंगन में ही अमरूद का पौधा लगा देते हैं, और सिर्फ अमरूद का ही क्यों? आम और जामुन का भी लगा देंगे। पर तुमको वादा करना होगा कि तुम उनका ख्याल रखोगी क्योंकि मुझे तो काम पर जाना होता है, तो बोलो, ठीक है?"


राधा, अपनी मां की बात सुनकर एकदम खुश हो गई। उसने अपनी मां से वादा किया कि वो उन पौधों का ख्याल रखेगी।


...


अगले ही रविवार के दिन, राधा पूरी उमंग से अपनी मां के साथ अपने आंगन को साफ करने में लग गई। छोटा सा ही आंगन था। पर उसकी उम्मीदों बहुत बड़ी थीं।उसने उसमे अपनी मां के साथ मिलकर अमरूद, आम और जामुन का पेड़ लगाया। उसकी खुशी को शब्दों में लिख पाना ज़रा नामुमकिन है।


राधा, रोज़ अपने पौधों को पानी देती, उनकी देखभाल करती, खुद से उनकी लंबाई भी नापा करती, उनसे ढेर सारी बातें करती। उसको जैसे प्यारे दोस्त मिल गए थे।


रोज़ वो अपनी मां से पूछा करती , इन पर फल कब लगेंगे? मां हंस कर कहती, " जब ये बड़े हो जाएंगे, तब इन पर ढेर सारे फल लगेंगे।" राधा बेसब्री से अपने दोस्तों के बढ़ने का इंतजार करती।


...


10 
साल बाद, 

राधा अब किशोरावस्था में आ चुकी थी। और अपने दोस्तों के साथ बड़ी हो चली थी। आम, अमरूद और जामुन के पौधे भी अब फलदार वृक्ष बन चुके थे। उसका छोटा सा आंगन,मीठे मीठे फलों के साथ साथ चिड़ियों की चहचहाहट से गूंजता रहता था। अब वो जितने चाहे अमरूद, आम और जामुन तोड़ सकती थी। फलों के साथ साथ वो आस पड़ोस के बच्चों को पौधों के बारे में जानकारी देती और ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के   लिए तैयार करती।

...


5 साल बाद
आज राधा शहर में अपना एक छोटा सा सफल बिजनेस चलाती है - RADHA - organic fruits and jam.
अपने बचपन में, अपने आंगन में, अपनी मां द्वारा दिखाए सपने को फल फूलते देख उसे बहुत गर्व होता है।



मौलिक रचना

प्रियंका वर्मा
9/7/22


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7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Jul-2022 04:40 PM

बेहतरीन रचना

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Priyanka Verma

10-Jul-2022 02:39 PM

Thank you so much 🙏💐😊, all of you

Reply

Gunjan Kamal

10-Jul-2022 11:37 AM

बेहतरीन प्रस्तुति

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